ये शाम रूहानी लगती है......मां सिर्फ तुम्हारी बाहों में : प्रदीप त्रिपाठी


यह शाम रूहानी लगती है,
यह शाम सुहानी,ये रात रूहानी, जग खोकर
माँ सिर्फ तुम्हारी बाहों में।
पा लू जग की खुशियां लेकिन,
मुस्कान तुम्हारी बाहों में ।।

जग खोकर सब मिल जाता,
रोता चेहरा खिल जाता है।   
माँ सिर्फ तुम्हारी बाहों में,     
सब भूख -प्यास मिट जाता। 
काटे जन्नत बन जाते,          
सिर्फ तुम्हारी बहो में।।         

अब तो जीवन तुम बिन माँ,
थार सी बंजर लगती है।
क्या लिखूं तुम्हारे कर्मो को....
ये कलम भी फीकी पड़ती है।
ये शाम रूहानी लगती है....माँ सिर्फ तुम्हारी बाहों में।।

                                           - प्रदीप त्रिपाठी


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